(The prime minister of India addresses the nation on the evening of 21st September, 2012. He justifies his government's actions of reducing subsidies by saying that 'the money doesn't grow on trees'. Taking clues from it, I reflect upon the nature of crony-capitalism in the country in form of the following words.)
पेड़ों पर नहीं उगता
सही फरमाया आपने जनाब,
पैसा पेड़ों पर नहीं उगता है.
पैसा निकलता है कोयलेकी खदानों से,
कर्णाटक के कुदरती खनिज गोदामों से,
कच्छके मेंग्रोवकी लापरवाह तबाही से,
पैसा उपजता है घूसखोरी और घासचारों से,
टेलीकोम टावरों और कोमनवेल्थी खेलों से,
पेड़ों पर नहीं उगता
सही फरमाया आपने जनाब,
पैसा पेड़ों पर नहीं उगता है.
पैसा निकलता है कोयलेकी खदानों से,
कर्णाटक के कुदरती खनिज गोदामों से,
कच्छके मेंग्रोवकी लापरवाह तबाही से,
पैसा उपजता है घूसखोरी और घासचारों से,
टेलीकोम टावरों और कोमनवेल्थी खेलों से,
अंतरिक्षी साधनों और लश्करी हथियारों से.
पैसा तो नदी में बहेता है,
उस पर बड़ा बांध बनकर उसमें निवेश किया जा सकता है.
बचे हुए पर्यावरण को मेनेज और मिटीगेट किया जा सकता है.
जंगलोकी कटाई पे फाइवस्टार सेमीनार किया जा सकता है.
और ज़मीनी हकीकतों पे राजद्रोह लगाया जा सकता है.
पैसा तो धर्मगुरुओं के महेलोंकी गद्दियो तले दबा होता है,
जिससे वे पेट्रोल खरीदके चिंगारीओंकी तलाशमें निकल पड़ते है.
रास्ते में वे हमें आर्ट ऑफ़ पोज़िटिव थिंकिंग सिखाते है.
पैसों से भीड़ जमा हो सकती है,
पैसों से गुहार लगाईं जा सकती है,
पैसों से जनादेश निकाला जा सकता है,
पैसों से जंतरमंतरकी दुकानें चलती है और
काले पैसों पे आजकल रामलीलाएं होती है.
सही फरमाया आपने जनाब,
पैसा पेड़ों पर नहीं उगता है.
पैसा हमारी जेबोंमें होता है.
कुछ लोगोंकी जेबें लंबी होती है,
कानून के हाथ से भी लंबी और
कोयलेके खदानोंसे भी गहरी.
- ऋतुल जोषी
२२ सितम्बर, २०१२
पैसा तो नदी में बहेता है,
उस पर बड़ा बांध बनकर उसमें निवेश किया जा सकता है.
बचे हुए पर्यावरण को मेनेज और मिटीगेट किया जा सकता है.
जंगलोकी कटाई पे फाइवस्टार सेमीनार किया जा सकता है.
और ज़मीनी हकीकतों पे राजद्रोह लगाया जा सकता है.
पैसा तो धर्मगुरुओं के महेलोंकी गद्दियो तले दबा होता है,
जिससे वे पेट्रोल खरीदके चिंगारीओंकी तलाशमें निकल पड़ते है.
रास्ते में वे हमें आर्ट ऑफ़ पोज़िटिव थिंकिंग सिखाते है.
पैसों से भीड़ जमा हो सकती है,
पैसों से गुहार लगाईं जा सकती है,
पैसों से जनादेश निकाला जा सकता है,
पैसों से जंतरमंतरकी दुकानें चलती है और
काले पैसों पे आजकल रामलीलाएं होती है.
सही फरमाया आपने जनाब,
पैसा पेड़ों पर नहीं उगता है.
पैसा हमारी जेबोंमें होता है.
कुछ लोगोंकी जेबें लंबी होती है,
कानून के हाथ से भी लंबी और
कोयलेके खदानोंसे भी गहरी.
- ऋतुल जोषी
२२ सितम्बर, २०१२
बहुत खूब -ॠतुल भाई---
ReplyDeletethe money doesn't grow on trees' , But the satire definitely does . . .
ReplyDeletekya baat karte hain joshi ji...paise ke ped kya humne paise ki bel bhi dekhi hai jo hindustan se shuru hoke switzerland tak pohonchi hai...in fact kaafi door tak faili hai ! paise ke ped ki iss prajaati mein chlorophyll ki jagah hare gandhi ji dikhayi dete hain..
ReplyDeletechashme ka number check karwa lijiye